AKI's Paradise

Be kid again and grow with me...and I assure you enjoy your childhood again...

Thursday, June 28, 2007

मेरे पापा का जन्मदिन





पता है, मेरे पापा का जन्मदिन कब आता है - अरे नहीं पता तो पूछो ना। पूछने में क्या जाता है, मैं कोई मना थोरे ही ना कर रही हूँ। चलो बता ही देती हूँ - मेरी मम्मी ने बताया कि मेरे पापा का जन्मदिन हर वर्ष २५ जून को आता है। और ये २५ जून कब था? .... पूछो - पूछो। अरे थोड़ा तो दिमाग लगाओ.... भगवान् ने दिया तो है। नहीं समझे, अरे आज २८ जून है तो कब हुआ? ३ दिन पहले ही तो। अब समझ मे आया? चलो कोई बात नहीं - होता है, होता है। ज्यादा काम करने से मशीन घिस जाता है या फिर मशीन नहीं चलने से उसमे जंग लग जाता है।


हाँ तो मैं बता रही थी कि घर पर सभी लोग कितने खुश थे। लेकिन पता है, उस दिन रोज कि तरह पापा मुझे सोते छोड़कर ऑफिस चले गए। मैं तो विश भी नहीं कर पायी। हाय रे मेरी नींद और गंदु से मेरे पापा। मुझे सोते छोड़कर चले गए, कम से कम विश करवाने के लिए ही उठा देते। खैर वो समय से घर तो आ गए, आते कैसे नहीं मेरे भगवान् से तो सब डरते हैं। अगर मैं भगवान् से शिक़ायत कर देती तो? सोचो - सोचो।
पता है हम सपरिवार पिज्ज़ा हट गए। सपरिवार मतलब मैं, पापा और मम्मी नहीं। सपरिवार का मतलब होता है वो सभी जो मुझसे बेहद प्यार करते हैं। वहाँ मेरा खूब मन लगा। खूब सारे खेलने कि जगह और उसपे सरे स्टाफ भी अच्छे। क्या मजा किया हमने। फोटो देखो - फोटो देखो।
पता हैं हमारे यहाँ केक नहीं कटते, हम केक बनाते हैं उसे काटते नहीं। ये पाश्चात्य सभ्यता मेरे घर पे किसी को पसंद नहीं। हमारे यहाँ जन्मदिन पर पूजा होती है। मेरे पहले जन्मदिन पर तो पंडित भी आये थे।
अरे हाँ, मैं तो बताना भूल ही गयी कि मैं सुबह सोयी क्यों रह गयी। वो रात को ना जब मैं सो रही थी तो गौरव चाचा का ठीक १२ बजकर १ मिनट पर पापा को विश करने के लिए फ़ोन आया था और मैं जग गयी थी। आधे - अधूरे नींद मे तो मुझे याद ही नहीं रहा वरना मैं भी विश कर ही देती। वो जो मैं जग गयी ना तो फिर सुबह आंख ही नहीं खुली वरना क्या मजाल कि मेरी नींद ना खुले। कभी आजमा के देख लो, बस मोबाइल बजने कि देर है।
चलो अब बंद करती हूँ, रात बहुत हो गयी है और नींद भी आ रही है। थोरी सी भूख भी लग रही है। जाती हूँ और खाना खाकर सोती हूँ।
तब तक के लिए अलविदा !!

शुभ रात्री,
अकी

आ गयी हूँ मैं...

आपका स्वागत है। मैं जानती हूँ कि आप अचंभित होंगे कि मैं इतनी छोटी सी कैसे इतनी बातें करती हूँ। जी हाँ, भगवान् ने मुझे आप सभी लोगों के लिए भेजा है। आप सभी को ये सिखाना है कि हम बच्चों के साथ कैसे बर्ताव करनी चाहिऐ। क्योंकि आप सभी लोग आज के भौतिकवादी और क्षन्भंगूर स्वप्निल संसार मे मग्न हैं। कोई भी हम नन्हें मुन्नों कि सुध लेने वाला नहीं है।


क्या आपने कभी सोचा है कि हम बच्चों को आपसे क्या चाहिऐ। आप हमें वोही देते हैं जो आप समझते हैं कि अच्छा है। हम क्या समझते हैं कभी आपने सोचा है। क्या आपने कभी हमारी सुध ली है।

अच्छा छोडो, मेरे दूध पीने का समय हो गया है.....समय पे दूध दे दिया करो और ज्यादा मत रुलाया करोवार्ना भगवान् जी से आपकी शिक़ायत लगा दूंगी। फिर अगर उन्होने आपकी रेटिंग खराब करके नरक में भेज दिया तो मुझे दोष मत देना। बाद मे बात करती हूँ.....

इश्वर दूत,
अकी